"बकवास! सरासर बकवास! हमें किसी डिफ़ेंस प्लान की ज़रूरत नहीं है। हम अहिंसा की नीति पर चलते हैं। हमें किसी देश से कोई खतरा नहीं है। आर्मी को खत्म कर दो! हमारे देश की सुरक्षा के लिए पुलिस काफ़ी है।"
जब भारत के कमांडर इन चीफ़ General Sir Robert McGregor Macdonald Lockhart, आज़ादी के तुरंत बाद एक डिफ़ेंस प्लान लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के पास पहुंचे तो यह पंडित जी की प्रतिक्रिया थी।
वैसे तो मैं ये पोस्ट यहीं खत्म करने वाली थी लेकिन लगा कि आगे की जानकारी भी रोचक है तो उसे भी साझा कर दिया जाए।
तो कुछ ऐसे ही विचार गांधी जी के भी थे कि देश को आर्मी की ज़रूरत नहीं है। इस घटना के कुछ वक्त बाद ही जब कश्मीर के हालात बिगड़ने शुरू हुए तो लोगों ने लॉकहार्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए, तब मजबूरन पंडित जी ने लॉकहार्ट को बुलाकर उनसे इस पूरी सिचुएशन पर स्पष्टीकरण मांगा।
लॉकहार्ट ने बताया कि उनको कश्मीर-पाक सीमा (कश्मीर तब तक आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा नहीं था) पर घुसपैठ की जानकारी तो थी, मगर उनको लगा नहीं था कि पाकिस्तान के कबीलाई भारत के लिए कोई खतरा हैं, इसलिए उन्होंने यह जानकारी सरकार के साथ साझा नहीं की। इस पर पंडित जी ने उनसे पूछा कि क्या उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ है? इस सवाल का जवाब देने की जगह लॉकहार्ट ने अपने पद से इस्तीफ़ा देना पसंद किया।
पंडित जी से बातचीत के अगले ही दिन 26 जनवरी 1948 को लॉकहार्ट ने अपने मिलिट्री सचिव जिक रूद्र से कहा कि दूसरे कमांडर इन चीफ़ की तलाश शुरू कर दी जाए क्योंकि उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
इसके कुछ वक्त बाद, इंडियन आर्मी चीफ़ के चुनाव के लिए बुलाई गई मीटिंग में पता चला कि पंडित जी इस पद पर किसी ब्रिटिश को ही देखना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि देश में किसी सैन्य अधिकारी को सेना को लीड करने का अनुभव नहीं है, इसलिए कोई इस योग्य नहीं है कि आर्मी चीफ़ का पद संभाल सके।
पंडित जी के इस प्रस्ताव पर, उसी मीटिंग में मौजूद लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर ने कहा कि ऐसे तो हमारे पास देश चलाने का अनुभव भी नहीं है, तो क्यों न इसके लिए भी किसी ब्रिटिश को बुला लिया जाए।
इस पर जब तत्कालीन रक्षामंत्री बलदेव सिंह ने आर्मी चीफ़ की पोस्ट के लिए नाथू सिंह राठौर के नाम का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने कहा कि मेरी जगह मेरे सीनियर जनरल केएम करियप्पा को आर्मी चीफ़ बनाया जाना चाहिए क्योंकि वो इस पद के योग्य हैं। इस तरह 15 जनवरी 1949 को केएम करियप्पा के रूप में देश को पहला भारतीय कमांडर इन चीफ़ मिला।
नोट: लॉकहार्ट के इस्तीफ़े के बाद और करियप्पा के पदग्रहण से पहले, करीब साल भर तक जनरल फ्रांसिस बुचर ने कमांडर इन चीफ़ का पद संभाला था।
आज देश को कारगिल विजय दिवस मनाते देख पंडित जी के ये विचार मन में कौंधे कि अगर वाकई आर्मी खत्म कर दी गई होती तो विजय दिवस छोड़िए, हम अपना स्वतंत्रता दिवस भी न मना पा रहे होते।
जब भारत के कमांडर इन चीफ़ General Sir Robert McGregor Macdonald Lockhart, आज़ादी के तुरंत बाद एक डिफ़ेंस प्लान लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के पास पहुंचे तो यह पंडित जी की प्रतिक्रिया थी।
वैसे तो मैं ये पोस्ट यहीं खत्म करने वाली थी लेकिन लगा कि आगे की जानकारी भी रोचक है तो उसे भी साझा कर दिया जाए।
तो कुछ ऐसे ही विचार गांधी जी के भी थे कि देश को आर्मी की ज़रूरत नहीं है। इस घटना के कुछ वक्त बाद ही जब कश्मीर के हालात बिगड़ने शुरू हुए तो लोगों ने लॉकहार्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए, तब मजबूरन पंडित जी ने लॉकहार्ट को बुलाकर उनसे इस पूरी सिचुएशन पर स्पष्टीकरण मांगा।
लॉकहार्ट ने बताया कि उनको कश्मीर-पाक सीमा (कश्मीर तब तक आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा नहीं था) पर घुसपैठ की जानकारी तो थी, मगर उनको लगा नहीं था कि पाकिस्तान के कबीलाई भारत के लिए कोई खतरा हैं, इसलिए उन्होंने यह जानकारी सरकार के साथ साझा नहीं की। इस पर पंडित जी ने उनसे पूछा कि क्या उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ है? इस सवाल का जवाब देने की जगह लॉकहार्ट ने अपने पद से इस्तीफ़ा देना पसंद किया।
पंडित जी से बातचीत के अगले ही दिन 26 जनवरी 1948 को लॉकहार्ट ने अपने मिलिट्री सचिव जिक रूद्र से कहा कि दूसरे कमांडर इन चीफ़ की तलाश शुरू कर दी जाए क्योंकि उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
इसके कुछ वक्त बाद, इंडियन आर्मी चीफ़ के चुनाव के लिए बुलाई गई मीटिंग में पता चला कि पंडित जी इस पद पर किसी ब्रिटिश को ही देखना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि देश में किसी सैन्य अधिकारी को सेना को लीड करने का अनुभव नहीं है, इसलिए कोई इस योग्य नहीं है कि आर्मी चीफ़ का पद संभाल सके।
पंडित जी के इस प्रस्ताव पर, उसी मीटिंग में मौजूद लेफ़्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर ने कहा कि ऐसे तो हमारे पास देश चलाने का अनुभव भी नहीं है, तो क्यों न इसके लिए भी किसी ब्रिटिश को बुला लिया जाए।
इस पर जब तत्कालीन रक्षामंत्री बलदेव सिंह ने आर्मी चीफ़ की पोस्ट के लिए नाथू सिंह राठौर के नाम का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने कहा कि मेरी जगह मेरे सीनियर जनरल केएम करियप्पा को आर्मी चीफ़ बनाया जाना चाहिए क्योंकि वो इस पद के योग्य हैं। इस तरह 15 जनवरी 1949 को केएम करियप्पा के रूप में देश को पहला भारतीय कमांडर इन चीफ़ मिला।
नोट: लॉकहार्ट के इस्तीफ़े के बाद और करियप्पा के पदग्रहण से पहले, करीब साल भर तक जनरल फ्रांसिस बुचर ने कमांडर इन चीफ़ का पद संभाला था।
आज देश को कारगिल विजय दिवस मनाते देख पंडित जी के ये विचार मन में कौंधे कि अगर वाकई आर्मी खत्म कर दी गई होती तो विजय दिवस छोड़िए, हम अपना स्वतंत्रता दिवस भी न मना पा रहे होते।
"Nonsense! Absolute nonsense! We don't need any defense plan. We follow the policy of non-violence. We have no threat from any country. Abolish the army! The police are sufficient for the security of our country."
This was the reaction of Pandit Nehru, the first Prime Minister of India, when the Commander-in-Chief of India, General Sir Robert McGregor Macdonald Lockhart, approached him with a defense plan immediately after independence.
I was going to end this post here, but I thought the additional information might be interesting, so I'll share it as well.
Gandhi Ji also had similar thoughts, believing that the country did not need an army. Shortly after this incident, when the situation in Kashmir started to deteriorate, people began questioning Lockhart's credibility. Pandit Ji was then compelled to call Lockhart and seek an explanation regarding the entire situation.
Lockhart explained that he was aware of the infiltration along the Kashmir-Pakistan border (Kashmir was not officially a part of India at that time), but he did not consider the tribal forces from Pakistan to be a threat to India, so he did not share this information with the government. Pandit Ji then asked him if he was biased towards Pakistan. Instead of answering this question, Lockhart preferred to resign from his position.
The day after his conversation with Pandit Ji, on January 26, 1948, Lockhart told his military secretary, Zik Rudra, to start looking for a new Commander-in-Chief because he had resigned from his post.
Some time later, in a meeting convened to select the new Chief of the Indian Army, it was found that Pandit Ji wanted a British officer for the position because he believed that no Indian military officer had the experience to lead the army, and hence, no one was suitable for the post of Army Chief.
To this proposal, Lieutenant General Nathu Singh Rathore, who was present in the same meeting, remarked that in that case, since we also lack experience in running the country, we should call a British person for that as well.
When the then Defense Minister Baldev Singh proposed Nathu Singh Rathore’s name for the post of Army Chief, Rathore suggested that his senior, General K. M. Cariappa, should be made the Army Chief because he was more deserving of the position. Thus, on January 15, 1949, the country got its first Indian Commander-in-Chief in the form of K. M. Cariappa.
Note: After Lockhart's resignation and before Cariappa's assumption of office, General Francis Bucher held the position of Commander-in-Chief for about a year.
Today, seeing the country celebrate Kargil Vijay Diwas, Nehru's thoughts come to mind: if the army had indeed been abolished, forget celebrating Vijay Diwas, we might not even be able to celebrate our Independence Day.
Translation by ChatGPT
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